पानी में मीन प्यासी रे ... मेरा परम निदान मुझसे अलग है बाहर है। दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। आदमी अपने पास से नहीं दूर से संतुष्ट होता है। लोग ब्रह्म को ,श्रेष्ठ -चेतन को भूल गए। जड़ चेतन सबको ईश्वर मान लिया गया। लोग ब्रह्म के वास्तविक स्वरूप को भूल गए। ब्रह्म का मतलब है महान श्रेष्ठ। उपनिषदों में चार महावाक्यों में कहा गया है ब्रह्म का स्वरूप : मैं ब्रह्म हूँ -उत्तम पुरुष (अहंब्रह्मास्मि ) मैं श्रेष्ठ हूँ -अयं आत्मा ब्रह्म -ये आत्मा ही ब्रह्म है वही तू है - तत् त्वं असि (मध्यम पुरुष ) ये आत्मा ब्रह्म है -अन्य पुरुष ज्ञान ही ब्रह्म है। - प्रज्ञानं ब्रह्म ये बातें लोग भूल गए हैं। श्रेष्ठ तत्व को भूल जाने से रास्ता दूसरा हो गया।मान लिया ब्रह्म कहीं अलग है जड़ चेतन को मिलाकर ब्रह्म है।ब्रह्म है लेकिन हमारी समझ गलत है। बाहर ब्रह्म खोजने की बात -रोवो ,गाओ , नाँचो ब्रह्म को रिझाओ ... भक्त यही कर रहा है। दो दो अक्षरों को मिलाकर कहा नाम जपो ,राम जपो , .... नाम जप आदि मन के निग्रह के लिए ठीक है लेकिन अंतिम तो 'नामी' को समझ...